आधी सूखी रोटी पे था नमक भी कम पड़ रहा माँ ने पूछा लाल से कौन है ये रच रहा? पेट की न आग बुझी प्यास भी अब जल गयी होती क्षुधा शांत मेरी ख्वाब बनकर रह गयी. देखा था कल फ़ेंक रहा था, छत की मुंडेर से जूठन कोई, सोच रहा था मैं, मुझे दे देता वाही जूठन कोई. आगे बढ़ा जब हारकर तो कुतिया भी चट कर गयी ...
( लेख व कविताएँ )