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अक्तूबर, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

वर्तमान सभ्यता व समाज का समग्र चित्र प्रस्तुत करती हैं अरुण कमल की कविताएँ

समसामायिक हिंदी कविता गहरे सामाजिक सरोकारों की कविता है। वह मानवीय संबंधों के प्रति अतिशय संवेदनशील है। उसमें टुकड़ो में ही सही, लेकिन वर्तमान सभ्यता और समाज का समग्र चित्र विद्यमान है। समय और परिस्थिति का दबाव भले ही कवि को अपने में सिमटने पर विवश करे, पंरतु वह पर-दुख-ताप से पिघलकर अपने व्यक्तित्व में दरिया का विस्तार महसूस करता है। अरुण कमल के व्यक्तित्व निर्माण के मुख्य प्रेरणास्त्रोत उनके पिता श्री कपिलदेव मुनि रहे। कविता लेखन में अरुण कमल की विशेष रुचि थी। कविता की भावुकता उनके निजी जीवन में भी देखने को मिलती है। संगीत में भी उनकी विशेष अभिरुचि है। अरुण कमल के ‘नये इलाके में’ काव्य-संग्रह को वर्ष 1998 का ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ दिए जाने पर विद्वानों के मध्य अनेक विवाद उपजे और बहुत से आक्षेप लगाए गए। किन्तु इन कविताओं में गहरे डूबने पर जो जीवन की अर्थ-छवियाँ पाठक को मिलती हैं, उनमें वे सारे आक्षेप अपने आप खारिज हो जाते हैं। काव्य में वस्तु अथवा रूप में से किसी एक को अधिक महत्व देना सही नहीं है । इनमें से कोई भी बड़ा या छोटा नहीं है । दोनों का संबंध अन्योन्याश्रित है।

छात्रा को जिन्दा जलाने पर विश्वकर्मा समाज में आक्रोश, आज़ाद मैदान में दिया धरना

मुम्बई:  उ.प्र. के प्रतापगढ़ जिले के श्रीपुर गाँव में दबंगों द्वारा बी.ए. की  छात्रा ज्योति विश्वकर्मा को ज़िंदा जला दिए जाने की घटना से आक्रोषित विश्वकर्मा समाज ने सोमवार, २६ अक्टूबर २०१५ को आज़ाद मैदान में धरना प्रदर्शन कर दोषियों पर कड़ी कारवाई की मांग करते हुए पीड़ित परिवार को उचित मुआवज़ा देने की मांग की है। सर्व विश्वकर्मा समाज संस्था की ओर से आयोजित इस धरने के संयोजक शिवलाल सुतार ने बताया कि गत 25 सितम्बर को गाँव के कुछ दबंगों ने ज्योति पर मिट्टी का तेल डालकर ज़िंदा जला दिया था, जिसने बाद में इलाहाबाद के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया। यदि पुलिस व प्रशासन ने मामले को गंभीरता से लिया होता, तो शायद ज्योति की जान बच सकती थी।  ऐसी घटनाएँ दुबारा न हो, इसके लिए हम सबको कमर कसनी होगी। इस घटना के विरोध में महाराष्ट्र के कोने-कोने से विश्वकर्मा वंशीय इकट्ठा हुए।  मुंबई में  भारी  संख्या में औरतों ने भी इस प्रदर्शन में  इसमें भाग लिया।  विश्वकर्मा समाज की विभिन्न सामाजिक संस्थाओं ने धरने में शामिल होकर दोषियों को कठोर सज़ा की मांग करते हुए पीड़ित परिवार को दी जानेवाली सहायता राशि बढ़ाने क

अच्छाई पर बुराई की विजयादशमी..!!

विजयादशमी, बुराई पर अच्छाई की जीत, अनैतिकता पर नैतिकता की विजय, इसी रूप में इस पर्व को देखा जाता है। आज पूरे देश में हर्षोल्लास का वातावरण रहा। लोगों ने एक दूसरे को दशहरे की शुभकामनायें दीं, घर के द्वार पर तोरण आदि बांधे। अपने खून-पसीने की कमाई से लाये गए वाहनों का अभिषेक किया व फूलों की मालाएँ चढ़ाकर उनकी पूजा-अर्चना की। घर में तरह-तरह के पकवान बने, जिसका सभी ने अवश्य आनंद उठाया। आज सभी ने पूरे मन से इस त्यौहार को मनाया । बुराई पर अच्छाई की जीत! बड़ा आश्चर्य होता है, इस बारे में सोचकर व आज की परिस्थिति देखकर। यह बात सतयुग के लिए ही शोभनीय है, आज कलियुग में ऐसी आशा करना भी मूर्खता है। मानव में आज मानवता छोड़कर अन्य हर भाव दृश्यमान हो रहे हैं। हर एक व्यक्ति खुद को शक्तिशाली दिखाने की होड़ में लगा हुआ है। गरीब व असहाय, उच्च वर्ग के हर तबके द्वारा सताए जा रहे हैं। धर्म-जाति के नाम पर गृह युद्ध विराम लेने का कोई संकेत नहीं दे रहा। लोग अपने स्वार्थ हेतु किसी भी श्रेणी तक जाने को तैयार हैं। मध्यम वर्ग, जो अपनी सभ्य संस्कृति व ईमानदारी की मिसाल बना हुआ था, आज उसके कदम भी लड़खड़ा रहे हैं।