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रक्षाबन्धन : भाई -बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक

रक्षाबन्धन एक हिन्दू त्यौहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं। रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मँहगी वस्तु तक की हो सकती है।  राखी सामान्यतः बहनें भाई को ही बाँधती हैं परन्तु ब्राह्मणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित सम्बन्धियों (जैसे पुत्री द्वारा पिता को) भी बाँधी जाती है। कभी कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बाँधी जाती है। अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बाँधने की परम्परा भी प्रारम्भ हो गयी है। हिन्दुस्तान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरुष सदस्य परस्पर भाईचारे के लिये एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं। हिन्दू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षासूत्र बाँधते समय कर्मकाण्डी पण्डित या आचार्य संस्कृत में एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबन्धन का सम्बन्ध राजा बलि से स्पष्ट र

ईद - उल - फ़ित्र : मानवता व प्रेम का पर्व

इस्लाम धर्मावलंबी  रमज़ान उल-मुबारक के महीने के बाद एक मज़हबी ख़ुशी का त्यौहार  मनाते हैं जिसे ईद उल-फ़ित्र कहा जाता है। ये यक्म शवाल अलमकरम को मनाया जाता है। ईद उल-फ़ित्र शव्वल -- इस्लामी  कैलंडर के दसवें महीने -- के पहले दिन मनाया जाता है। इस्लामी  कैलंडर के सभी महीनों की तरह यह भी नए चाँद के दिखने पर शुरू होता है। मुसलमानों का त्योहार ईद मूल रूप से भाईचारे को बढ़ावा देने वाला त्योहार है. इस त्योहार को सभी आपस में मिल के मनाते है और खुदा से सुख-शांति और बरक्कत के लिए दुआएं मांगते हैं।  पूरे विश्व में ईद की खुशी पूरे हर्षोल्लास से मनाई जाती है।  मुसलमानों का त्योहार ईद रमज़ान का चांद डूबने और ईद का चांद नज़र आने पर उसके अगले दिन चांद की पहली तारीख़ को मनाई जाती है।  इसलामी साल में दो ईदों में से यह एक है (दूसरा ईद-उल-जुहा या बकरीद कहलाता है) ।  पहला ईद उल-फ़ितर पैगम्बर मुहम्मद ने सन 624 ईसवी में जंग-ए-बदर के बाद मनाया था।  उपवास की समाप्ति की खुशी के अलावा इस ईद में मुसलमान अल्लाह का शुक्रिया अदा इसलिए भी करते हैं कि उन्होंने महीने भर के उपवास रखने की शक्ति दी।  ईद के दौरान

अनभै

कल विद्यालय से छूटकर अमित जी से मिलने नवभारत के कार्यालय पहुँचा।  उनसे मुलाक़ात की। एक लम्बे अरसे के बाद मिले थे।   काफी देर तक बातचीत हुई।  तत्पश्चात हम दोनों घर की तरफ साथ ही निकले। रास्ते में भी काफी बातें हुईं।  पता चला कि उन्होंने ब्लॉग लिखना प्रारंभ कर दिया है।  मैंने  भी पुनः ब्लॉग  लिखने की ठानी। उसी का परिणाम है कि आज इतने दिनों के पश्चात् पुनः लिखने बैठा हूँ।  'अनभै'  के ३३वे अंक में मेरी कविता '  आधी सूखी रोटी ' प्रकाशित हुई। बड़ी प्रसन्नता हुई। गुरुवर  डॉ. रतनकुमार पाण्डेय जी से कविता लिखने के सन्दर्भ में कई अन्य मार्गदर्शन भी मिले। कल विद्यालय में सम्पन्न हुई '  वक्तृत्व स्पर्धा  ' का समाचार दैनिक नवभारत के आज के अंक  में प्रकाशित हुआ है । समाचार पत्र में अपना नाम देखकर किसे ख़ुशी न होगी। मुझे भी अच्छा लगा।  जल्द ही अपनी कुछ अन्य कविताओं को  ब्लॉग पर प्रकाशित करूँगा।