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यह समय घबराने का नहीं, अपितु सृजन का है-विश्वनाथ प्रसाद तिवारी 

मानव रूप में जीवन बड़े ही सौभाग्य की बात है। आज संपूर्ण विश्व का आधिपत्य मानव के ही हाथ में है। मनुष्य का एक प्रबल पक्ष यह है कि वह अपनी अनुभूतियों को प्रत्यक्ष रूप से प्रकट कर सकता है। इस प्रकटीकरण का एक अत्यंत सशक्त माध्यम है - ‘कविता’। ‘कविता’ को समझने के लिए एक संवेदनशील हृदय होना अति आवश्यक है। आज समाज की व्यवस्था में भारी बदलाव आया है। जाति-व्यवस्था अब भले ही समाप्ति की ओर हो, किंतु एक और ही व्यवस्था का उद्भव हुआ है, वह है - वित्तवादी व्यवस्था; जिसके प्रभाव से शायद ही कोई व्यक्तिविशेष  बच पाया हो। जीवन व जगत की अनुभूतियाँ रचनाकार को रचना - विशेष के लिए प्रेरित करती हैं। ऐसे में उसकी अनुभूतियों का प्रकाशन उसकी रचना-धर्मिता के द्वारा जागतिक धरातल पर अनायास ही हो जाता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि वह अपनी चिंतनशक्ति के द्वारा मन में उमड़ते हुए अनुभूतिगत भावों को सृजन के रूप में साकार कर देता है। समाज परिवर्तन की सबसे पहली सूचना कविता ही पाठकों को देती है। डाॅ. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी एक बहुआयामी साहित्यिक व्यक्तित्व के धनी हैं। वे एक लोकप्रिय कवि, समर्थ आलोचक, गंभीर