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मई, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अन्न की कीमत पैसों से ना तौलें..!!

अन्न की कीमत पैसों से ना तौलें..!! ------------------------------------- एक बार मैंने दादाजी से पूछा,"आप खेती करते हैं, लेकिन खेती में जो लागत आती है, वह तो पैदावार से अधिक होती है। इससे फायदा क्या? फिर आप क्यों इतनी मेहनत करते हैं, व्यर्थ पसीना बहाते हैं..!! इससे तो अच्छा हो..कि हम अनाज बाजार से ही खरीद कर खायें।" इस पर दादाजी मुस्कुराये, और बोले," बेटा, खेती करने से भले ही मुझे कोई लाभ न हो, पर मैं एक किसान हूँ और मेहनत करना मेरा धर्म है। अपने द्वारा पैदा किया हुआ अनाज खाकर मुझे जो संतुष्टि मिलती है, वह बाजार से खरीदकर लाये गए अनाज को खाकर नहीं होगी; और यदि सभी तुम्हारे जैसा सोचने लगें, तो अन्न पैदा कौन करेगा..? और तुम जिस बाजार से अन्न खरीदने की बात कर रहे हो, वहाँ भी अनाज कहाँ से आएगा..?" दादाजी की इस बात को सुनकर मैं सोच में पड़ गया..!! आज जो किसान अपना खून-पसीना बहाकर धरती के सीने से अन्न पैदा करता है..उसकी दशा कितनी दयनीय है..!!..और..उसी के द्वारा पैदा किये हुए अन्न को बाजार में बेचकर बड़े-बड़े सेठ-साहुकार अपनी झोली भर रहे हैं और विलासितापूर्ण जीवन

'वह माँ '

'वह माँ ' •••••••••••••••••• अपने छह माह के शिशु को रेल्वे प्लेटफार्म पर सुलाकर वह माँ लोगों की सहानुभूति बटोरती भीख में मिले उन पैसों पर जीती और खाती। भादों की एक सुबह उसी प्लेटफार्म की ठंडक उस छह माह के शिशु को निगल गई और वह माँ बेजान शिशु को कलेजे से लिपटा बिलखकर रह गई..!! 💦 💦 💦 💦 (सत्य घटना पर आधारित- बान्द्रा स्टेशन, प्लेटफार्म क्र.1) - इंद्रकुमार विश्वकर्मा