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अन्न की कीमत पैसों से ना तौलें..!!

अन्न की कीमत पैसों से ना तौलें..!!
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एक बार मैंने दादाजी से पूछा,"आप खेती करते हैं, लेकिन खेती में जो लागत आती है, वह तो पैदावार से अधिक होती है। इससे फायदा क्या? फिर आप क्यों इतनी मेहनत करते हैं, व्यर्थ पसीना बहाते हैं..!!
इससे तो अच्छा हो..कि हम अनाज बाजार से ही खरीद कर खायें।"
इस पर दादाजी मुस्कुराये, और बोले," बेटा, खेती करने से भले ही मुझे कोई लाभ न हो, पर मैं एक किसान हूँ और मेहनत करना मेरा धर्म है। अपने द्वारा पैदा किया हुआ अनाज खाकर मुझे जो संतुष्टि मिलती है, वह बाजार से खरीदकर लाये गए अनाज को खाकर नहीं होगी; और यदि सभी तुम्हारे जैसा सोचने लगें, तो अन्न पैदा कौन करेगा..? और तुम जिस बाजार से अन्न खरीदने की बात कर रहे हो, वहाँ भी अनाज कहाँ से आएगा..?"
दादाजी की इस बात को सुनकर मैं सोच में पड़ गया..!!
आज जो किसान अपना खून-पसीना बहाकर धरती के सीने से अन्न पैदा करता है..उसकी दशा कितनी दयनीय है..!!..और..उसी के द्वारा पैदा किये हुए अन्न को बाजार में बेचकर बड़े-बड़े सेठ-साहुकार अपनी झोली भर रहे हैं और विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं..!!
और वहीं बेचारा गरीब किसान..अपनी गरीबी के बोझतले दबकर, आर्थिक समस्याओं से जूझते हुए कई बार मजबूरन आत्महत्या का रास्ता चुनता है..!!
पर हमें क्या फर्क पड़ता है..हम तो अपने घर के डाइनिंग टेबल पर आराम से बैठकर भोजन का आनंद लेते हुए इस समाचार को टीवी पर देखते हैं..और इन सबके लिए सरकार को कोसते हैं..!!
फिर कई बार थाली में बचे हुए भोजन को यही समझकर फेंक देते हैं कि चलो 15-20 रु. ही इस अनाज की कीमत होगी..। फ़ेंक दो..क्या फर्क पड़ता है..!!
और इसी प्रकार ना जाने कितना अन्न कूड़ेदान में चला जाता है..और वहीं देश के असंख्य गरीब अन्न के एक-एक दाने के लिए तरसते हैं..और कुपोषण के शिकार होते हैं..कई भूखों मरते हैं..!!
कई बार हम भी जाने-अनजाने में अन्न को रुपयों में तौलते हैं और बचा हुआ भोजन किसी गरीब को दे देने को बजाय कूड़ेदान को अर्पित कर देते हैं..!!
पर क्या यह उचित है..??
-इन्द्र कुमार विश्वकर्मा


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