आज हम अपना ६३ वां स्वतंत्रता दिवस मन रहे हैं। हमारी आज़ादी को ६२ साल पूरे हो गए हैं। आज हमारा मन खुशी से झूम उठा है। मन में नए उमंग व जोश का संचार हुआ है। लेकिन आज भी ऐसे कुछ पाषाणह्रदय व्यक्ति हैं, जिनका ह्रदय भक्ति के भाव से नहीं भरा है। ऐसे लोगो के लिए ही शायद एक कवि ने कहा है-
भरा नहीं जो भाव से, बहती जिसमें रसधार नहीं,
ह्रदय नहीं पत्थर है वो, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
परम पूज्य महात्मा गांधीजी ने जिस भारत का स्वप्न देखा था, क्या वह स्वप्न साकार हुआ है. आज तो आलम ये है-
रामराज्य की तेरी कल्पना उडी हवा में बनके कपूर,
बच्चों ने पढ़ना लिखना छोड़ा तोड़ फोड़ में हैं मगरूर,
नेता हो गए दलबदलू, देश की पगडी रहे उछाल,
तेरे पूत बिगड़ गए बापू, अपना चमन रहे उजाड़।
आज अपने स्वार्थ के लिए हम दूसरों का गला कटते हैं। क्या हमारी धरती माता को यह स्वीकार होगा? वह तो चीखकर यही कहेगी-
ए शमा तुम जरा दूर हटकर जलो,
कब्र पर तुम मेरे जलने के काबिल नहीं,
वो जलेंगे यहाँ जो जले हैं सदा,
जिंदगी जिनकी रोशन बनाई गई,
मिल सका न कफन आखिरी वक्त पर,
बल्कि छाती पर गोली चलाई गई।
हम यदि अपने देश का हित चाहते हैं, तो हमे मिलकर प्रयास करना होगा। देश हित को सबसे ऊपर रखना होगा। अपने बारे में नहीं देश के बारे में सोचे । सच का साथ दे।
जय भारत !!!
Nice1
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