सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

साइकिल चलाना हमने तीन चरणों में सीखा..

बचपन में साइकिल चलाने का अनुभव बड़ा ही अनोखा रहा। व्हाट्सएप पर आये इस पोस्ट ने बचपन को पुनः समक्ष खड़ा कर दिया है। अपने विद्यार्थियों के निवेदन पर यह व्हाट्सएप का पोस्ट बिल्कुल उसी रूप में अपने ब्लॉग पर शेयर कर रहा हूँ..

हमारे जमाने में साइकिल तीन चरणों में सीखी जाती थी, पहला चरण कैंची और दूसरा चरण डंडा तीसरा चरण गद्दी........

तब साइकिल चलाना इतना आसान नहीं था क्योंकि तब घर में साइकिल बस पिताजी या चाचा चलाया करते थे तब साइकिल की ऊंचाई 24 इंच हुआ करती थी जो खड़े होने पर हमारे कंधे के बराबर आती थी ऐसी साइकिल से गद्दी चलाना संभव नहीं होता था...

"कैंची" वो कला होती थी जहां हम साइकिल के फ़्रेम में बने त्रिकोण के बीच घुस कर दोनो पैरों को दोनो पैडल पर रख कर चलाते थे।

आज की पीढ़ी इस "एडवेंचर" से मरहूम है उन्हे नहीं पता की आठ दस साल की उमर में 24 इंच की साइकिल चलाना "जहाज" उड़ाने जैसा होता था...

हमने ना जाने कितने दफे अपने घुटने और मुंह तोड़वाए हैं और गज़ब की बात ये है कि तब दर्द भी नहीं होता था, गिरने के बाद चारो तरफ देख कर चुपचाप खड़े हो जाते थे अपने हाफ कच्छे को पोंछते हुए।

अब तकनीकी ने बहुत विकास  कर लिया है पांच साल के होते ही बच्चे साइकिल चलाने लगते हैं वो भी बिना गिरे। दो दो फिट की साइकिल आ गयी है, और अमीरों के बच्चे तो अब सीधे गाड़ी चलाते हैं छोटी छोटी बाइक उपलब्ध हैं बाज़ार में...

मगर आज के बच्चे कभी नहीं समझ पाएंगे कि उस छोटी सी उम्र में बड़ी साइकिल पर संतुलन बनाना जीवन की पहली सीख होती थी!  "जिम्मेदारियों" की पहली कड़ी होती थी जहां आपको यह जिम्मेदारी दे दी जाती थी कि अब आप गेहूं पिसाने लायक हो गये हैं...

इधर से चक्की तक साइकिल लुढकाते हुए जाइए और उधर से कैंची चलाते हुए घर वापस आइए ! इस जिम्मेदारी को निभाने में खुशियां भी बड़ी गजब की होती थी...

और ये भी सच है की हमारे बाद "कैंची" प्रथा विलुप्त हो गयी, हम लोग दुनिया की आखिरी पीढ़ी हैं जिन्होंने साइकिल चलाना तीन चरणों में सीखा !

पहला चरण कैंची

दूसरा चरण डंडा

तीसरा चरण गद्दी

(इस पोस्ट के लेखक को धन्यवाद!)

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

निर्भया कांड की याद दिला रही है यह घटना..

मानव सभी जीवों में श्रेष्ठ माना जाता है, परंतु उसकी बढ़ती संवेदनहीनता मानवता के लिए अभिशाप बनती जा रही है। उ.प्र. के बाराबंकी जिले के हैदरगढ़ कोतवाली क्षेत्र अन्तर्गत ज्ञानखेड़ा गांव में हुई गोविंद विश्वकर्मा की हत्या के मामले में वांछित आरोपी की गिरफ्तारी के लिए नेशनल नीड पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरविन्द विश्वकर्मा के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मण्डल ने शनिवार को अपर पुलिस महानिदेशक लखनऊ जोन से मिलकर ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन सौंपने के बाद अरविन्द विश्वकर्मा ने बताया कि बीते 20 अगस्त को ज्ञानखेड़ा गांव में गोविन्द विश्वकर्मा की नृशंस हत्या कर दी गई थी। हत्यारों ने गोविन्द की आंख निकाल ली, गुप्तांग काट दिया। यह हत्या निर्भया काण्ड की याद दिला रही है जो कानून व्यवस्था पर करारा तमाचा है। उन्होंने बताया कि चार हत्यारों में तीन की गिरफ्तारी तो हो गई परन्तु एक नामजद जो पेशेवर अपराधी है की गिरफ्तारी में स्थानीय पुलिस हीलाहवाली कर रही है। यही कारण है कि वांछित की गिरफ्तारी के लिये अपर पुलिस महानिदेशक को ज्ञापन सौंपना पड़ा।  अरविंद विश्वकर्मा ने बताया कि अपर पुलिस महानिदेशक लखनऊ से ...

अधूरा सच (कविता)

छात्रा को जिन्दा जलाने पर विश्वकर्मा समाज में आक्रोश, आज़ाद मैदान में दिया धरना

मुम्बई:  उ.प्र. के प्रतापगढ़ जिले के श्रीपुर गाँव में दबंगों द्वारा बी.ए. की  छात्रा ज्योति विश्वकर्मा को ज़िंदा जला दिए जाने की घटना से आक्रोषित विश्वकर्मा समाज ने सोमवार, २६ अक्टूबर २०१५ को आज़ाद मैदान में धरना प्रदर्शन कर दोषियों पर कड़ी कारवाई की मांग करते हुए पीड़ित परिवार को उचित मुआवज़ा देने की मांग की है। सर्व विश्वकर्मा समाज संस्था की ओर से आयोजित इस धरने के संयोजक शिवलाल सुतार ने बताया कि गत 25 सितम्बर को गाँव के कुछ दबंगों ने ज्योति पर मिट्टी का तेल डालकर ज़िंदा जला दिया था, जिसने बाद में इलाहाबाद के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया। यदि पुलिस व प्रशासन ने मामले को गंभीरता से लिया होता, तो शायद ज्योति की जान बच सकती थी।  ऐसी घटनाएँ दुबारा न हो, इसके लिए हम सबको कमर कसनी होगी। इस घटना के विरोध में महाराष्ट्र के कोने-कोने से विश्वकर्मा वंशीय इकट्ठा हुए।  मुंबई में  भारी  संख्या में औरतों ने भी इस प्रदर्शन में  इसमें भाग लिया।  विश्वकर्मा समाज की विभिन्न सामाजिक संस्थाओं ने धरने में शामिल होकर दोषियों को कठोर...